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नर्मदा सेवा या राजनैतिक अवसरवादिता

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मप्र में शिवराज सरकार की नर्मदा यात्रा इन दिनों खासी चर्चा में है जिसका समापन कल 15 मई को नरेंद्र मोदी अमरकंटक में करेंगे. राज्य की जीवन रेखा कही जाने वाले नर्मदा नदी एकाएक चर्चा में आ गई जब शिवराज सरकार ने इस नदी के अवैध रेत खनन पर कार्यवाही करने के बजाय एक यात्रा निकालने की घोषणा की थी और इरफ घोषणा ही नहीं की वर्ना खुद लगभग हर जिले में वे सपत्नी उपस्थित रहें जहां जहां से यह यात्रा निकली. यात्रा का राजनैतिक उद्देश्य तो स्पष्ट था ही कि उनकी कुर्सी डोल रही थी व्यापमं और डगर घोटालों में नाम आने के बाद, चर्चा यहाँ तक थी कि अनिल माधव दवे मुख्य मंत्री का पद सम्हालेंगे पर शिवराज ने अपनी राजनैतिक चतुराई से पहले कैलाश विजयवर्गीय को संगठन में भेजा, फिर अनिल माधव दवे को केंद्र में और अंत में खुद बने रहें.
इस यात्रा का कोई आधिकारिक बजट नहीं था पर बताया जा रहा है कि लगभग पचास करोड़ से ज्यादा इसमें खर्च हो गए होंगे, इस यात्रा को कई स्तरों पर प्रचारित किया गया और इसमे फ़िल्मी कलाकारों से लेकर धर्म गुरुओं जिसमे रविशंकर से लेकर दलाई लामा तक शामिल है , को रुपया पानी की तरह बहाकर बुलवाया गया और शिवराज सरकार की पीठ थपथपवाई गई. प्रदेश में मजबूत विकल्प नहीं है अस्तु कोई विरोध जमकर नहीं हुआ. एक ओर सामाजिक संगठनों ने और मेधा पाटकर जैसे लोगों ने विरोध किया वही प्रदेश के बुद्धिजीवियों ने नदी से रेत के अवैध उत्खनन को लेकर सवाल उठाये. देवास जिले के पूर्व कांग्रेसी विधायक ने तो नर्मदा यात्रा के दौरान धमकी दी थी की यदि अवैध उत्ख्नना नहीं रुका तो वे सपत्नी नदी में डूबकर अपने को विसर्जित कर देंगे.
अब कल जब प्रधानमन्त्री अमरकंटक पहुंच रहे है तो सोशल मीडिया पर बसों के अधिग्रहण से होने वाली परेशानियों को लेकर विरोध हद से ज्यादा बढ़ गया है. जिलों के कलेक्टरों ने शासन से बसों के अधिग्रहण में लगने वाले डीजल और अन्य शुल्क हेतु छयासी लाख रूपये प्रति जिला मांगे है ताकि प्रदेश के सभी 51 जिलों से लोगों की भीड़ को भरकर लाया जा सकें. देवास में प्रति बस इक्कीस हजार दिए गए है और पचास बसों को अधिग्रहित किया गया है.

देखे – सरकारी आदेश



साथ ही शहडोल संभाग के तीनों जिलों शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में एक माह से सारा काम ठप्प है और प्रशासन हवाई पट्टी से लेकर प्रधान मंत्री की सुरक्षा और आवागमन जैसे व्यवस्थाओं में उलझा है. उमरिया में जेनिथ संस्था के निदेशक बिरेन्द्र गौतम बताते है कि आदिवासी गाँवों में पिबे को पानी नहीं है, राजगार ग्यारंटी योजना का भुगतान गरीब आदिवासियों को तिन सालों से नहीं किया गया है, पूरा प्रशासन ठप्प है, यह इलाका पिछले नै माह में दो चुनाव झेल चुका है और रुपयों की भयानक बर्बादी देख चुका है उस पर से अब यह नौटंकी घातक है.
भास्कर, भोपाल  के पत्रकार राधेश्याम दांगी लिखते है कि मां नर्मदा सेवा यात्रा का असली सच दुखद है, नर्मदा सेवा यात्रा को लेकर कर्ज में डूबी राज्य सरकार, आम जनता की हाड़तोड़ मेहनत के पैसों को इस तरह राजनैतिक लाभ के लिये उड़ा रही है। शर्म आना चाहिये… 
नर्मदा सेवा यात्रा पर करोड़ों रुपये खर्च किये गये। यदि इतने पैसे मां नर्मदा को स्वच्छ बनाने पर खर्च किया जाता तो, निर्मल नर्मदा आशिर्वाद देती. लेकिन यदि इस तरह के ढोंग रचे बिना ये खर्च किये जाते तो राजनैतिक लाभ कैसे मिलता”. आज सोशल मीडिया पर नर्मदा यात्रा और शिवराज सरकार की जो थू थू हुई है वह आने वाले चुनावों में क्या करवट लेगी यह समय बताएगा.
इस यात्रा ने पीने के पानी से जूझते हुए प्रदेश में कई सवाल उठाये है. इस गर्मी में जब लोग बस स्टैंड पहुंच रहे है तो प्रशासन के लोग बसों को अधिगृहित कर रहे है , यात्रा के लिए बसें नही है, रोते बिलखते बच्चे, गर्भवती महिलाएं कड़ी धूप में 43-46 डिग्री तक के तापमान पर झुलस रही है और बस नही है – पूछिये क्यों, क्योकि प्रधान मंत्री अमरकंटक आ रहे है।
तीन चार मूल सवाल है जो विरोध नही बस कानूनी दायरे में देखने की जरूरत है : –
1- क्या बसों को अधिगृहित कर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भीड़ भेजना कलेक्टर या आर टी ओ का काम है ?
2- क्या यह किसी संविधान में लिखा है कि किसी महामहिम के आने पर इतनी दूर के जिलों से भीड़ को इकठ्ठा कर, जानवरों की भांति ठूंस ठूंसकर ले जाया जाए आखिर इसके मायने क्या है ?
3- बसों को इस तरह के मजमे जहाँ व्यक्ति या पार्टी या सत्ता विशेष की ब्रांडिंग होती हो उसमे आम लोगों को कष्ट देकर सार्वजनिक यातायात के साधनों का दुरुपयोग करना कितना जायज है ?
4- जिले में आये दिन फलाना ढिमका आता रहता है और जिला कलेक्टर स्कूल बंद करवाकर बसें अधिगृहित कर लेते है वो भी प्रायः मुफ्त में और एक चलते फिरते तंत्र को बर्बाद कर देते है ये शासन, प्रशासन या संविधान के किस नियम के तहत करते है इसकी जानकारी दी जाए या अमरकंटक जैसे निहायत ही व्यक्तिगत और करोड़ों रुपये खर्च कर नदी की परिक्रमा की नौटँकी कर अपनी छबि बनाने वाले मुखिया को ये सलाह किसने दी ? और आखिर प्रधानमंत्री जैसे ताकतवर शख्स को आखिर क्या मजबूरी आन पड़ी कि वे सिर्फ सवा घण्टे के लिए आ रहे है ?
5- क्या माननीय हाई कोर्ट या मप्र मानव अधिकार आयोग स्वतः संज्ञान लेकर इस पर कुछ करेगा, क्योकि हमारा चौथा खम्बा तो बेहद अंधा और भ्रष्ट हो चुका है और इस समय सड़क छाप स्कूलों के विज्ञापन चेंपकर रुपया उगाही में व्यस्त है !!!
जय नर्मदा मैया की, नर्मदे हर, हर हर !!!
 
-संदीप नाईक
स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता और सलाहकार