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मैंने अपनी बीमारी के सामने हथियार डाल दिए हैं – इरफ़ान खान

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लंदन में करीब चार महीन से न्यूरोइंडोक्राइन कैंसर की गंभीर बीमारी का इलाज करा रहे एक्टर इरफान खान ने एक दर्दभरा लेटर लिखकर अपना हाल बयां किया है. 51 वर्षीय अभिनेता इरफान ने अपने इस इमोशनल लेटर में लिखा है कि अब उन्होंने परिणाम की चिंता किए बगैर बीमारी के सामने हथियार डाल दिए हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें नहीं मालूम चार महीने या दो साल बाद जिंदगी कहां लेकर जाएगी.

 

पढ़िए – इरफ़ान खान क्या लिखा है अपने लेटर में?

“कुछ समय पहले मुझे पता चला मैं हाई ग्रेड न्यूरोइंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित हूं. मेरी शब्दावली में यह नया शब्द था. मुझे पता चला कि ये रेयर है, इस पर ज्यादा स्टडी भी नहीं हुई है और इसके बारे में ज्यादा जानकारी भी उपलब्ध नहीं है. इसके उपचार के कितना फायदा है, ये भी पक्का नहीं है. मैं डॉक्‍टरों के लिए गिनीपिग  बन गया था. मैं एक अलग ही तरह का गेम खेल रहा था. जैसे कि एक तेज रफ्तार ट्रेन में यात्रा कर रहा था. मेरे कुछ सपने थे, प्लान थे, कुछ महत्वाकांक्षाएं थीं, लक्ष्य थे और मैं पूरी तरह उनमें खोया हुआ था. अचानक किसी ने मेरे कंधे पर थपकी दी. मैंने पलटकर देखा तो टीसी था. उसने कहा- ‘तुम्हारा स्टेशन आने वाला है, तुम्हें उतरना होगा.’ मैं कन्फ्यूज था और कह रहा था- नहीं-नहीं, मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है. यह मेरा स्टेशन नहीं है. ऐसा कैसे हो रहा है?”
“तेजी से बदलती चीजों ने मुझे अहसास दिलाया कि आप समुद्र में तैरते कॉर्क की तरह हो, जिसके साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है और आप किसी तरह उसे रोकने की कोशिश कर रहे हो. इस उथल-पुथल, सदमे, डर और घबराहट के बीच मैं अस्पताल विजिट के दौरान अपने बेटे से कहता हूं कि मैंने अपने आप से सिर्फ एक चीज की उम्मीद की थी कि इस हालात में क्राइसिस को फेस न करना पड़े. मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना है. डर और घबराहट मुझपर हावी न हो पाए. क्योंकि यह मुझे दयनीय स्थिति में पहुंचा देगी.”
 

“यह मेरा उद्देश्य था और तभी दर्द ने दस्तक दी. अब तक आप सिर्फ दर्द को जान रहे थे और अब आपको इसके नेचर और उसके प्रभाव के बारे में पता लग गया था. कुछ भी काम नहीं कर रहा था. न ही सांत्वना और न ही प्रेरणा. सबकुछ उस वक्त सिर्फ दर्द में तब्दील हो चुका था और यह दर्द खुदा से भी ज्यादा बड़ा लग रहा था.”
“जैसे ही मैं हॉस्पिटल के अंदर दाखिल हुआ तो मैं कमजोर, थका हुआ और उदासीन सा था. मुझे इस बात का बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि अस्पताल के अपोजिट लॉर्ड्स स्टेडियम है, जो कि मेरे बचपन के सपने का मक्का है. दर्द के बीच मेरी नजर उस पोस्टर पर पड़ी, जिसमें विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दे रहा था. मुझे अहसास हुआ कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

“हॉस्पिटल में एक कोमा वॉर्ड भी था. मेर वॉर्ड के ठीक ऊपर. जब मैं अपने अस्पताल रूम की बालकनी में खड़ा था तो मुझे जैसे धक्का लगा. जिंदगी के खेल और मौत के बीच सिर्फ एक रोड का फासला था. एक तरफ हॉस्पिटल था और दूसरी तरफ स्टेडियम. निश्चितता का दावा कहीं नहीं किया जा सकता था. न अस्पताल में और न ही स्टेडियम में. इससे मुझे बहुत गहरा धक्का लगा. मैं ब्रह्मांड की भारी शक्ति और समझदारी से भर गया. मेरे अस्पताल की लोकेशन भी मुझ पर असर डालती है. एक ही चीज निश्चित है और वह है अनिश्चितता. मैं केवल यह कर सकता हूं कि अपनी ताकत को समझूं और अपना गेम अच्छे से खेलूं.”
“इस अहसास के बाद मैंने हथियार डाल दिए, बिना यह परवाह किए कि परिणाम क्या होगा. मुझे नहीं पता कि आज से 8 महीने पहले या चार महीने बाद या दो साल बाद जिंदगी मुझे कहां लेकर जाएगी. अब मैंने चिंताओं को किनारे रख दिया है और दिमाग से निकाल दिया है।”
“पहली बार मुझे सही मायनों में यह अहसास हुआ कि आजादी का मतलब क्या होता है. यह एक उपलब्धि की तरह है. ऐसा लगता है कि मैंने पहली बार जिंदगी का स्वाद चखा. इसका जादुई पहलू देखा. भगवान के प्रति मेरा भरोसा और मजबूत हुआ. मुझे लगा कि यह मेरे रोम-रोम में समा गया.”
“आगे क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन फिलहाल, मैं ऐसा ही महसूस कर रहा हूं. मेरी इस जर्नी के दौरान लोगों ने मुझे शुभकामनाएं दीं, दुनियाभर के कई लोगों ने मुझे दुआ दी. उन्होंने जिन्हें मैं जानता हूं और उन्होंने भी जिन्हें मैं नहीं जानता. लोग अलग-अलग जगह से और अलग-अलग समय में दुआ कर रहे हैं और मुझे लगता है कि सभी की दुआएं एक हो गई हैं. ये दुआएं एक फोर्स की तरह मेरे स्पाइन से सिर तक दाखिल हो गई हैं. ये बढ़ रही हैं, कभी एक कली, एक पत्ते, एक टहनी और एक गोली की तरह. दुआओं के संग्रह से आया हर फूल, हर टहनी और हर पत्ती मुझे आश्चर्य, खुशी और जिज्ञासा से भर देता है. यह अनुभूति होती है कि कॉर्क को किसी को कंट्रोल करने की जरूरत नहीं है. आप कुदरत के बनाए हुए झूले में झूल रहे हैं.”