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क्या ये "आप" के खिलाफ़ राजनीतिक बदले की कार्यवाही है ?

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7 फरवरी 2015 को जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आये और आम आदमी पार्टी ने श्री मोदी जी और भाजपा की लहर के बावजूद (जो उस चुनाव के बाद यूपी, गुजरात आदि में भी दिखी) 70 में 67 सीट जीतकर इतिहास रचा, तो पूरे देश में एक नयी राजनीति की किरण तो जगी पर इसके साथ-साथ देश की दो मात्र बड़ी पार्टियाँ, कांग्रेस और भाजपा सहम उठीं थी. जहाँ कांग्रेस को पूरा देश नकार चुका था और दिल्ली में भी 0 सीट मिली थी, वहीं जो भाजपा श्री नरेन्द्र मोदी जी के नाम के सहारे हर राज्य को फतह करने का सोच रही थी उसे दिल्ली की इस ऐतिहासिक हार में आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल के रूप में बड़ा रोंड़ा दिखा और शायद तभी से ‘आप’ और अरविन्द केजरीवाल से नफरत भाजपा के हर बड़े नेता और प्रवक्ता में दिखी.
भाजपा के कई वरिष्ठ प्रवक्ता ‘आप’ को “चार आदमी पार्टी”, कुछ दिन के मेहमान आदि कहने लगे और इस उम्मीद में थे की भले ही ‘आप’ ने सरकार बना ली हो पर चूंकि ‘आप’ के सभी नेता राजनीति में बहुत नए थे, वो सरकार चलाने में उतने सक्षम नहीं होंगे, और मौका पाते ही किसी तरह से भाजपा आप की सरकार गिरा देगी.
पर हुआ बिलकुल उल्टा, अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने आते ही अपने सारे वादे पूरे करने शुरू कर दिए, दिल्ली को मुफ्त पानी दिया, बिजली के आधे किए, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभूतपूर्ण कार्य किए.

जब आप के अच्छे कार्यो की चर्चा पूरी देश में होने लगी तो भाजपा को ‘आप’ और भी खटकने लगी

पंजाब के चुनाव में आप के जीतने के कयास में भाजपा और कांग्रेस में भूचाल ला दिया, दोनों को लगा की वर्षो से चली आ रहू दोनों पार्टियों की सत्ता की जुगलबंदी को खतरा है और निश्चित तौर पे अगर आप पंजाब में जीती तो अन्य राज्यों में भी सम्भावनाएं प्रबल हो जायेगीं. पंजाब के चुनाव अभियान को देखकर साफ़ लगा की भाजपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और नतीजा ये हुआ की आप को सत्ता नहीं विपक्ष मिला.

कई बार की जा चुकी है आप को गिराने की कोशिश, आप ने कहा इस बार ‘चुनाव आयोग’ का सहारा

चाहे आप के विधायको को खरीदने की कोशिश हो या छोटी से छोटी चीज के लिए मुकदमा करना, विपक्ष ने जी तोड़ कोशिश की है आप की सरकार को गिराने की, पर हर बार असफल हुए.
हाल ही में मीडिया में ऐस ख़बरें आ रही हैं कि चुनाव आयोग की ओर से राष्ट्रपति के पास ये सिफ़ारिश भेज दी गयी  है कि ‘आप’ के 20 विधायकों की सदस्यता इसलिए रद्द कर दी जाए, क्योंकि ये सारे विधायक लाभ के पद पर हैं. इन 20 विधायकों पर संसदीय सचिव का पद है.
यह निंदनीय इसलिए भी है क्योंकि ये आरोप शीला दीक्षित की सरकार में भी लगे थे पर किसी भी सदस्य की सदस्यता रद्द नही हुई और आम आदमी पार्टी की सरकार ने तो ये नोटिस भी जारी किया था ककि कोई भी विधायक संसदीय सचिव पद के लिए ना तो वेतन पायेगा और ना ही उसे कोई निजी सुख-सुविधाएं मिलेंगीं.  आप के विधायक सौरभ भरद्वाज ने धुर्व राठी का एक ट्वीट अपने ट्वीटर अकाउंट से साझा की जिसमे मुख्य चुनाव आयुक्त ” एके ज्योति ” के मोदी जी के बेहद करीब होने के कई पॉइंट रखे हैं.

बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने भी चुनाव आयोग की  इस कार्यवाही को ‘राजनैतिक प्रतिशोध’ की कार्यवाही बताया है


क्या होगा अगर विधायकों की सदस्यता रद्द हुई ?
अगर ‘आप’ के  20 सदस्यों की सदस्यता रद्द होती है तो भी पूर्ण बहुमत होने के नाते आप की सरकार तो बनी रहेगी पर विपक्ष को आलोचना करने का एक मौका मिल जायेगा. सबसे पहले तो विपक्ष आप से नैतिकता के आधार पे इस्तीफा मांगेगा, टीवी पर आप पर कई सवाल उठाये जायेंगे और जब इन 20 सीटों पर फिर से चुनाव होंगे तो भाजपा  ज्यादा से ज्यादा सीट जीत कर, आप के कुछ विधायकों को अपनी ओर करके दिल्ली की सत्ता पलट करने की कोशिश करेगी.
आम आदमी पार्टी ने अपने ट्विटर हैंडल से ये विडियो पोस्ट किया