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व्यक्तित्व निर्माण- जब इच्छा शक्ति हो तब ही ये सम्भव है

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इस निरन्तर गतिशील और भागती जिन्दगी में कुछ चीजें चाह कर भी भुला नही सकते हो. अब चाहे वो आपके अपने निजी स्तर पर कुछ सन्दर्भ हो सकते है या सामाजिक स्तर के। मेरे साथ या मेरे समाने हमेशा कुछ ऐसी अप्रत्यक्ष घटनाये हो जाती है जिनका होना मुझे अंदर ही अंदर झकजोर देता है। चाहे वो जमीन के नीचे भाग रही बेतरतीब रफ्तार वाली जिंदगी से जुड़े हो या बाहरी दुनिया से जुड़ी हो।
बात ये नही है कि मेरे ही साथ या सामने ऐसा कुछ होता हो ! होता सबके सामने है पर आप उसे सामने देखते देखते हुए भी उसे देखते नही है , महसूस नही करते , खुद की जीवन प्रक्रिया के पीछे भगाते भगाते हुए भी वह खुद से ही भागने लगे जाते है। भागना यहाँ इंसानीयत से भागना है। मुझे ये सब नजारे कुछ हद तक हर्ट कर जाते है जिनको देखना परन्तु उस पर सिर्फ विचार मात्र कर रह जाना दुःख दे जाता है। आप कभी भी इस तरह के लोगो से जिंदगी में मिले तो जरूर ही होंगे परन्तु हम उनको इस तरह से व्हवहार में लाते है जैसे वो हमसे अलग हो।
इसमे कई तरह के पैदल फेरी वाले आते है जिनका पेट रोज के करने से भर पायेगा जिसमे गली चौराहो पर फेरी करने वाले ओर रॉड पर त्यौहारों के हिसाब से चीजो को बेचने वाले .. सड़को पर तौलिया ओर गाड़ी की एक्सेसरीज़ हाथो में लिए हुए भागने वाले ओर सिग्नल के लाल होते ही गाड़ियों ओर गाड़ी वालो को भगवान के रूप में देखने वाले इस मे खुद ब खुद अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ जाते है।

हम भी कुछ उस सान्दर्भिकता से जुड़ाव रखते है पर उससे थोड़ा अलग हम अपने आपको संजोय हुए है। बाते सब आपसे ओर हमसे ही जुड़ी है क्योंकि बात इंसानियत पर है आप ओर हम इंसान है तो बर्ताव में व्यक्ति के बदलने से आने वाले बदलाव को हम छोड़ सकते है जब इच्छा शक्ति हो तब ही jab ये सम्भव है।
व्यवहारिकता में बदलाव आना स्वभाविक है क्योंकि मानवीय प्रकृति कुछ इसी प्रकार की है । क्योंकि व्यवहार की संरचना समाने खड़े व्यक्ति के अस्तित्व ओर उसकी रूपरेखा से मस्तिष्क में बन जाती है । हम खुद ही खुद मानवीय स्तर पर अपनी बोली ओर व्यवहार को परिवर्तित कर लेते है। केवल व्यक्ति विशेष के प्रत्यक्ष व्यक्तित्व से आप वाचन की संरचना बना लेते है। जिसमे परिवर्तन की पुरजोर आवश्यकता है । व्यक्तिव में नही वाचन में परविर्तन जरूरी है जिससे उन लोगों को अपना पन महसूस हो सके ।