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कश्मीरी ब्राम्हण राज कौल से पंडित नेहरू तक ?

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मोतीलाल नेहरू का परिवार मूलतः कश्मीर घाटी से था। अठारहवीं सदी के आरम्भ में पंडित राज कौल ने अपनी मेधा से मुग़ल बादशाह फरुखसियार का ध्यान आकर्षित किया और वह उन्हें दिल्ली ले आये जहाँ कुछ गाँव जागीर के रूप में मिले, हालाँकि फरुखसियार की हत्या के बाद जागीर का अधिकार घटता गया, लेकिन राज कौल का परिवार दिल्ली में ही रहा और उनके पौत्रों मंशा राम कौल और साहेब राम कौल तक ज़मींदारी अधिकार रहे। मंशा राम कौल के पुत्र लक्ष्मीनारायण कौल दिल्ली के मुग़ल दरबार मे ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले वक़ील हुए। लक्ष्मीनारायण के पुत्र गंगाधर 1857 में विद्रोह के समय दिल्ली में एक पुलिस अधिकारी थे।
1857 के बलवे में गंगाधर ने दिल्ली छोड़ दी और अपनी पत्नी जेवरानी तथा दो पुत्रों, बंशीधर और नंद लाल व बेटियों पटरानी और महारानी के साथ आगरे आ गए। जहाँ 1861 में 34 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के तीन महीने बाद मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ। बंशीधर आगरे की सदर दीवानी अदालत में नौकर हुए और उप न्यायधीश के पद तक पहुँचे। नंद लाल राजस्थान के खेतड़ी रियासत में पहले शिक्षक हुए और वहाँ से राजा फतेह सिंह के दीवान के पद तक पहुँचे। 1870 तक वहाँ रहने के बाद वह राजा की मृत्यु के बाद आगरा लौट कर वक़ालत करने लगे। मोतीलाल का लालन पालन उन्हीं के यहाँ हुआ और अपनी कुशाग्रता से 1883 में वक़ालत की परीक्षा में सबसे अधिक अंक हासिल कर पहले कानपुर के पंडित पृथ्वीनाथ की सरपरस्ती में कानपुर में वक़ालत की और फिर इलाहाबाद पहुँचे और देश के सबसे बड़े वक़ीलों में जाने गए।
यह कहानी कोई मैने नहीं ढूंढी है। वर्षों पहले लिखी बी आर नन्दा की किताब “द नेहरूज़” में है और भी अनेक जगह। कल Shambhunath जी के यहाँ कुछ लोगों का तमाशा देखा तो वह नया नहीं था। नेहरू के वंशावली को लेकर झूठ प्रपंच फैलाया ही जाता है। इसलिए यहाँ एक जगह लिख दिया।

पुनःश्च :

  1. कौल नेहरू कैसे हुए इसे लेकर आमतौर पर यही माना गया है, कि नहर के किनारे रहते उनके नाम मे नेहरू जुड़ा। हालांकि एक कश्मीरी इतिहासकार का कहना है कि वे मूलतः कश्मीर के नौर गाँव के निवासी थे इसलिए नोरू और फिर नेहरू नाम पड़ा। अपनी अगली किताब में यह सब विस्तार से दूँगा।
  2. यह मुसलमान वाला किस्सा जहाँ तक मुझे समझ आता है सेकुलर और लिबरल मोतीलाल नेहरू के ख़िलाफ़ हिन्दू महासभाई मदन मोहन मालवीय आदि के दुष्प्रचार से उपजा है। उन पर बीफ़ ईटर और विधर्मी होने के आरोप उस समय लगाये गए थे जिन्हें लगता है कि अफवाह फैक्ट्रियों ने मनमाना विस्तार दिया।