फखरुद्दीन अली अहमद : अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले राष्ट्रपति.

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भारत के 5वें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद भारत में धर्मनिरपेक्ष नीति के एक अच्छे उदाहरण माने जाते हैं। अहमद भारत के पांचवे राष्ट्रपति के साथ साथ दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति भी थे।उनसे पहले उन्ही के अच्छे मित्र डॉ जाकिर हुसैन राष्ट्रपति रह चुके हैं।

अहमद इतिहास में अपनी देशभक्ति, उच्च शिक्षा और खेलो में दिलचस्पी के लिए जाने जाते हैं।वहीं व्यवहार में बेहद संयमित और लक्ष्यों के प्रति गंभीर व्यक्ति भी उन्हें कहा जाता है।

1905 में दिल्ली में जन्मे फखरुद्दीन 1931 में कोंग्रेस में शामिल हुए।24 अगस्त 1974 से 11 फरवरी 1977 तक भारत के 5वें राष्ट्रपति रहे।स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा भी उन्होंने हिस्सा लिया । खेलों में बेहद रुचि थी।

दिल्ली में हुआ था जन्म

फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई 1905 को दिल्ली के हौज़ काज़ी इलाके में हुआ था।उनके पिता कर्नल जलनूर अली अहमद ब्रिटिश प्रशासन में थे।वहीं माता बेगम रूकैया लोहारी के नवाब जियाउद्दीन अहमद के बेटी थी।पैतृक रूप से अहमद गोलाघाट के पास स्थित कदारीघाट के निवासी थे जो असम के शिवसागर में था।

कैम्ब्रिज से किया था लॉ

पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने अपनी शुरुआती शिक्षा यूपी के गोंडा से की थी। अहमद 7वी में थे जब पिता के ट्रांसफर के बाद वो भी पिता के साथ दिल्ली आ गए ।पंजाब विश्विद्यालय,लाहौर से मैट्रिक किया वहीं स्नातक के लिए दिल्ली के प्रसिद्ध कॉलेज सेंट स्टीफन में दाखिला लिया।

उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के केथलीन कॉलेज से कानून की पढ़ाई की।1928 में भारत वापस आ गए और पंजाब हाइ कोर्ट में वकील के तौर पर काम करने लगे।

40 की उम्र में की थी शादी

अहमद ने 1945 में खुद से 18 साल छोटी आबिदा हैदर से निकाह किया था।निकाह के दौरान वो 40 के थे वही आबिदा 22 की थी।आबिदा मोहम्मद सुल्तान हैदर “जोश” की बेटी थी जो उस समय अंग्रेज़ी हुकूमत में सिविल सर्विस में थे।दोनों के बीच उम्र का तकाजा था लेकिन दाम्पत्य जीवन खुशहाल था।उनके दो बेटों और एक बेटी है।

कैम्ब्रिज में हुई थी नेहरू से मुलाकात

जागरण के हवाले से, पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की नेहरू से मुलाकात कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान हुई थी।अहमद, नेहरू के विचारों और व्यक्तित्व दोनों से खासे प्रभावित हुए थे।जिसके बाद नेहरू के कहने पर ही उन्होंने 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की सदस्यता ली।

अहमद ,नेहरू को न केवल अपना सच्चा और अच्छा दोस्त मानते थे वहीं नेहरू उनके लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते थे।

राष्ट्रपति तक का सफ़र

फखरुद्दीन अली अहमद का राजनीतिक सफर 1931 में शुरू हुआ।1937 में असम लेजिस्लेटिव में चुने गए।हालांकि नेहरू की सलाह पर उन्होंने अपना नामांकन स्वतंत्र रूप से भरा था।इसके बाद 1966 से 1974 तक कोंग्रेस की कार्य समिति और केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य रहे।

1938 में जब गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में कोंग्रेस की संयुक्त सरकार बनी तो अहमद को वित्त और राजस्व मंत्रलय सौप दिया गया।हालांकि गोपीनाथ के नेतृत्व में जब असम में दोबारा चुनाव हुए तो इसमें अहमद को शिकस्त मिली।

नेहरू परिवार और गांधी के करीबी फखरुद्दीन अली अहमद को असम के एडवोकेट जनरल बना दिया गया।1952 तक एडवोकेट जनरल के रूप में काम किया।फिर असम राज्यसभा के सदस्य बने।24 अगस्त 1974 में इंदिरा गांधी की मदद से उन्हें भारत के 5वें राष्ट्रपति के तौर पर चुना गया।

आज़ादी आंदोलन में हुए थे गिरफ्तार

फखरुद्दीन अली अहमद सिर्फ भारत के राष्ट्रपति ही नहीं थे।वो स्वतंत्रता सेनानी थे,वहीं एक राष्ट्र भक्त भी थे।उन्होंने गांधी और कांग्रेस के साथ देश की आज़ादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।

13 अप्रैल 1940 को गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए सत्यग्रह में अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें एक साल के लिए गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।वहीं 1942 से 1945 तक तीन सालों के लिए सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्हें जेल में रखा गया।

जब आधी रात लागू हुआ था आपातकाल

पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद वो राष्ट्रपति है जिनके शासन काल में भारत मे आपातकाल की घोषणा की गई थी।उनका कार्यकाल 24 अगस्त 1974 से 11 फ़रवरी 1977 तक रहा।लेकिन 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने शासन के खिलाफ जनता में आक्रोश महसूस किया।

इससे पहले की सत्ता का हस्तांतरण होता या सत्ता भंग होती उससे पहले ही 24 जून 1975 की आधी रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से कागज़ों पर साइन करवा आपातकाल की घोषणा कर दी गयी।आपातकाल की अवधि 1977 तक चली और आख़िर में कांग्रेस सत्ता से बेदख़ल हो गयी।

बाथरूम में जब अचानक गिर गए थे राष्ट्रपति

11 फरवरी 1977 की सुबह नहाते वक्त फखरुद्दीन अली अहमद अपने बाथरूम में अचानक गिर पड़े।मालूम हुआ कि राष्ट्रपति को दिल का दौड़ा पड़ा है और उसी वक्त वो दुनिया को अलविदा कह गए। वो दूसरे राष्ट्रपति थे जिनके मौत राष्ट्रपति भवन में ही इस तरह से हुई थी। उनकी मौत के बाद भारत सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया था।