0

इस विख्यात कवि के हाल देखकर रो देंगे आप, खुद के जीवित होने का देना पड़ रहा है सुबूत

Share

बेगम ने एक दिन कहा नौकर से बदतमीज़,
उसने दिया जवाब कि कमतर नहीं हूं मैं.
मैडम ज़रा तमीज़ से बातें किया करो,
नौकर हूँ आपका, कोई शौहर नहीं हूं मैं.
(असरार जामई)
पटना में पैदा हुए, उर्दू अदब में तंजो-मिज़ाह के शायर असरार जामई का नाम किसी तारीफ का मोहताज नहीं है, चार किताबें लिख चुके और कभी मुशायरों की जान कहलाने वाले उर्दू के ये कद्दावर शायर आज बहुत बुरी स्थिति में हैं.
कुछ दिन पहले एक कार द्वारा टक्कर मारने के बाद उनका दाहिने हाथ में फ्रैक्चर हो गया था, हड्डी जोड़ने के लिए रॉड डलवाने के बजाय उन्होंने प्लास्टर चढ़वाना बेहतर समझा, 80 साल के बुज़ुर्ग शायर असरार जामई इन दिनों बहुत बुरे दौर से गुज़र रहे हैं. असरार साहब इन दिनों ओखला में अपने एक दोस्त के घर में रहते हैं, मगर हालात अफसोसनाक हैं.
इसकी सबसे बड़ी वजह दिल्ली के सोशल वेलफ़ेयर डिपार्टमेंट द्वारा उनको मरा हुआ बताका उनको मिलने वाली 1500 /- रूपये की पेंशन बंद कर देना, जब वह अपनी पेंशन चालू कराने वेलफेयर डिपार्टमेंट पहुंचे तो वहां के ऑफिसर्स उन्हें जिन्दा देखकर हैरान रह गए, उन्होंने असरार जामई से कहा आप तो मर चुके हो. इस पर असरार जमाई ने कहा कि मैं तो तुम्हारे सामने खड़ा हूं.
इससे बड़ा जिन्दा होने का मैं क्या सबूत दे सकता हूं. इस पर अफसर ने कहा कि मैं आपकी किसी तरह से मदद नहीं कर सकता हूं. गवर्नमेंट रिकार्ड्स में आप मर चुके हो. अपनी पेंशन चालू कराने के लिए असरार जामई ने बहुत कोशिशें कीं, उन्होंने सोशल वेलफेयर विभाग के चक्कर काटे, ओखला क्षेत्र के विधायक अमानतुल्लाह खान से गुज़ारिश की, मगर दिलासे और वायदों के अलावा कुछ नहीं मिला.
कद्दावर शायर रहे असरार जामई की ज़िन्दगी का ये पहलू बहुत ही अफसोसनाक है, बेरहम सियासत अपनों की अनदेखी ने उन्हें आज इस दौर में ला पटका है.
अपनी जवानी के दिनों में उन्होंने भारत के अलावा यूरोप, दुबई, और कुवैत जैसे कई बड़े देशों में परफॉर्म किया है. वो एपीजे अब्दुल कलाम, राजीव गांधी और लालू प्रसाद यादव जैसी कई हस्तियों के प्राइवेट फंक्शन में भी मुशायरा पेश कर चुके हैं.
असरार जामई का जन्म साल 1937 में पटना में हुआ था. उनके पिता का नाम सैयद वाली उल हक था. जो कि एक ज़मींदार थे. वे महात्मा गांधी के बहुत करीबी थी.
असरार जामई को कई बार पद्म श्री और उर्दू साहित्य अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया जा चुका है. लेकिन उन्हें अभी तक यह पुरस्कार कभी प्राप्त न हो सका.
मुझे असरार जामई साहब की इस हालत का पता मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के चांसलर जनाब फ़िरोज़ बख्त अहमद साहब की पोस्ट्स से चला, और सब कुछ पढ़कर अफ़सोस हुआ कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार इतनी संवेदनहीन कैसे हो गयी कि एक बुज़ुर्ग शायर को मरा हुआ बताकर उन्हें मिलने वाली 1500 /- रूपये जैसी मामूली पेंशन रोक कर बैठी है, और वो बुज़ुर्ग शायर अपने ज़िंदा होने का सबूत लिए सरकारी विभागों और विधायकों की चौखट पर सर पटक रहा है.
मैं दिल्ली के सभी दोस्तों से गुज़ारिश करता हूँ कि इस पोस्ट को शेयर करें, ताकि लोग दिल्ली सरकार की इस संवेदनहीनता को देखें, और एक ख़ास गुज़ारिश करूंगा कि केजरीवाल सरकार और विशेष रूप से ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान साहब तक ये बात पहुंचाएं, और इस बुज़ुर्ग शायर को मिलने वाली पेंशन कैसे भी करके शुरू करवाएं.
शुक्रिया

सैयद आसिफ़ अली